मोती -





खारे पानी मैं रहेनेवाला, एक मोती हु में...
जिस किसि के भी पास रहु, उसको अनमोल बनाती में...
तारीफ हर देखने वाला करे उसकी, उसका कारन बनती में...
फिरभी, एक चुप से मोती की तरह,कभीभी खुद पर ना इतराती में...

दोस्त मानकर ऐतबार, कर बेठी थी में जिस पर...
मतलब निकलते ही छोड़ दिया, उसने ही बिच रह पर...
ठोकर खाकर रह गया, ये मोती फिर से वही पर...
और सोचा लोग कितने, मतलबी हे ज़मी पर...

हर कोई केहता हे खारे पानी में रहेकर भी, कितना सचचा दिल हे मेरा...
पागलपन करती में, हर किसीको अपना समजती यहा...
यकी हे उससा कोई खुसनसीब ना होगा, जिसका साथ बनूंगी में...           
पर बदनसीब भी उससा कोई ना होगा, जिसकी जिंदगी का हिस्सा नहीं में...

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